सोमवार

छठ पूजा

छठ पूजा के लाभ और पर्यावरण महिमा      वैसे तो विशेष रूप से इसकी कोई तिथि नहीं है कि इसकी शुरुआत कहा से हुई सब की अलग अलग धारणाएं हैं           
                         छठ पूजा की शुरुआत                                         वैसे तो विशेष रूप से इसकी कोई तिथि नहीं है कि इसकी शुरुआत कहा से हुई सब की अलग अलग धारणाएं हैं महाभारत काल युग में जब कुंती ने सूर्य की उपासना की तब उनको कर्ण पुत्र को प्राप्ति हुई और द्रोपदी ने भी सूर्य की पूजा की सुर्य को जल अर्ग देकर ब्रत रखा इस प्रकार पांडवों के दुख दूर हुए! तब उनको राज्य मिला विश्वास पर निर्धारित मापदंड के अनुसार सूर्य देव की बहन छठ मैया है उनको प्रसन्न करने के लिए सूर्य की उपासना और अर्घ दिया जाता है पानी में खड़े होकर सूर्य की उपासना और अर्घ दिया जाता है गंगा नदी यमुना नदी तथा पोखरा तालाबों के किनारे पानी में हिल कर सूर्य की उपासना और अर्घ दिया जाता है जिससे वह प्रसन्न होकर हमारे सभी कामनाओं को पूरा करते हैं छठ पूजा चार दिन का त्योहार है कार्तिक मास शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक के इस पर्व के दौरान व्रती लगातार 36 घंटों का व्रत रखकर वे पानी भी ग्रहण नहीं करती है  प्रथम दिन नहाय - खाय के रूप में मनाया जाता है नहाय - खाय के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाली व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर रोटी व फल का सेवन प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं इसके उपरांत व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत के समाप्ति पर ही व्रती अन्य जल ग्रहण करती है मान्यता है कि पूजन से ही व्रती के घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है है षष्ठी को घर के पास नदी जलाशय तालाब पर सब जुटकर अस्ताचलगामी व दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व की समाप्ति होती है
        सूर्योदय का सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा के विशेष रूप से शुद्धि और पवित्रता के साथ समाज हितों की रक्षा के लिए जितना जरूरी है उसी तरह हमे इसे जीवनी जिवन जिने का एक प्रमुख हिस्सा हमारे शरीर और मन को शांति के साथ एक अलग ही शक्ति प्रदान करता है छठ जग में विशेष पवित्रता व शुचिता के लिए जाना जाता है इसमें सभी लोगों के हित की भावना है सूर्य षष्ठी व्रत होने से इसे छठ पूजा कहा गया है छठ पूजा वैसे तो साल में दो बार मनाया जाता है वस्तुतः हमे पहली और दूसरी तिथियों का विमोचन कर रहे हैं  पहला चैत्र मास में दूसरा कार्तिक मास में चैत्र शुक्ल पक्ष  पहला हम चैत्र मास में शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैत्री छठ व कार्तिक मास में कार्तिक छठ पूजा के नाम से जाना जाता है यह त्योहार हमारे देश में बिहार और उत्तर प्रदेश झारखंड के साथ पूरे देश में मनाया जाता है यह त्योहार विशेष रूप से सुख समृद्धि और शांति प्रदान मनोकामनाएं पूर्ति का त्योहार है जिसे सभी मिलकर मनाते हैं चाहे वह स्त्री हो या पुरुष सभी मिलकर मनाते हैं!                                                              
नहाय - खाय      पहला दिन नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है साफ सफाई कर पवित्र कर लिया जाता है छठव्रती स्नान कर शुद्ध होकर शाहकारी भोजन ग्रहण कर व्रत शुरू करते हैं घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन उपरांत ही भोजन करते हैं भोजन के रूप में कद्दू चावल दाल व चने की दाल को ही ग्रहण करते हैं नहाय खाय शुध्दि का रुप हैं!                                              लोहंडा और खरना     दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती दिनभर उपवास करने के बाद शाम को भोजन ग्रहण करती है इसे खरना कहते हैं खरना का प्रसाद लेने के लिए आस पास के सभी लोगो को निमंत्रण दिया जाता है प्रसाद के रूप में गाय के दूध में बने चावल की खीर के साथ दूध चावल का पिट्टा व घी चुपडी रोटी बनाई जाती है इसमें नमक और चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है शुध्दता का बड़ा महत्व और ध्यान दिया जाता है यही है खरना                                                             संध्या अर्घ      तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन झट प्रसाद बनाया जाता है प्रसाद के रूप में ठेकुआ बनाते हैं इसके अलावा चावल के लड्डू चढावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी झट प्रसाद के रूप में शामिल किया जाता है सूर्य को जल व दूध का अर्घ दिया जाता है तथा छठी मैया की सूप से भरे प्रसाद से पूजा जाता है पूरा मेले के समान हो जाता है                                     उषा अर्घ          चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्पति के दिन सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है व्रती फिर वही एकट्ठी होते हैं जहां शाम को अर्घ्य दिया था पिछली शाम की प्रक्रिया दोहराई जाती है अंत में व्रती कच्चे दूध का शर्बत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पुरा होता है! छठ पूजा पर्व की महिमा शक्ति रुप                      छठ पूजा पर्व
की महिमा                    छठ पूजा का उल्लेख हमे अपने पुराणों में वर्णित है और लेख मिलता है मैथिल वर्षकृत्य विधि में भी प्रतिशर षष्ठी की महिमामंडन का उल्लेख किया गया है बताया जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण जल में खडे होकर सुर्य की उपासना करते थे सूर्याध के बाद व्रतीयो से प्रसाद मागकर खाने का प्रवधान है प्रसाद में श्रतुफल के अतिरिक्त गेहूं के आटे व गुड़ से बने शुद्ध घी बने ठेकुआ व चावल के आटे व गुड़ से बने भूसवा का होना अनिवार्य है षष्ठी को करीबी नदी या जलाशयों के तट पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा समाप्त किया जाता है                                                             सूर्य के प्रभाव से बचने के लिए                           गावों में जहाँ शुद्धता के लिए गाय के गोबर से पुरे जगहों पर लेप कर शुद्ध किया जाता है व्रती को अलग कमरा दिया जाता है जहां आना जाना कम हो अगर कोई उस जगह जाता है तो नहा धोकर हाथ पाँव धोकर जाता है धारणाएं हैं कि अगर एक गल्ती होने पर सूर्य देव रुष्ट हो जाते हैं और उसका दुष्प्रभाव पडता है छठ पूजा का खास प्रसाद ठेकुआ गेहूं के आटे में घी व चीनी मिलाकर बनाया जाता है हथचक्की या जात में पीसती महिलाएं गीत गाते हुए छठ मैया की बहुत ही सुंदर दृश्य लगता है!                                       विश्वस्य हि प्राणनं जीवनं त्वे वि यदुच्छसि सूनर!!   सा नो रथेन बृहता विभावरी श्रुधि चित्रामघे हवम्!!
पर्यावरण तथा वैज्ञानिक प्रमाण                          जहा हमारे शरीर का निर्माण पाच तत्व से किया गया है पाच तत्व, मिट्टी, जल, अग्नि, गगन, और समीर से बना है इन सब में सूर्य की महत्वपूर्ण भूमिका है हमे वैज्ञानिक आधार पर परिमाणित है सूर्य से पृथ्वी पैदा होती है पृथ्वी से हम सबके शरीर निर्माण होते हैं सुर्य हमारे महापिता के रूप में व्यस्थापित है सूर्य हमारे रोम रोम में बसे हैं सूर्य हमारे दैनिक जीवन में एक सन्तुलन को कायम रखने के लिए हमें स्वस्थ रहने के लिए जितना जरूरी है उसी तरह हमारे हड्डियों में हमारे नसों में प्रवाह रहते हैं सूर्य हमारे उर्जा के श्रोता है जहाँ हमारे देश में सूर्य की महत्ता इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ सुर्य हमारे संस्कृति में हर जगह विद्वान है!  पर्यावरण संरक्षण व छठ पूजा में गहरा संबंध है छठ पूजा में प्रसाद के रूप में नयी फसलों का उपयोग किया जाता है सिघांडा, नीबू, हल्दी, अदरक, नारियल, केला संतरा, सेब के साथ साथ आटा चीनी व घी के मिश्रण से बने ठेकुआ जैसी बनी चीजें हमे प्राकृतिक के प्रति लोगों का अटूट विश्वास पैदा करती है मिट्टी के बने हाथी चढाएं जाते हैं जो जीव जंतु संरक्षण का उदाहरण है लकड़ी पर बने प्रसाद जहां व्रती का वर्त शरीर की सफाई के साथ हमारे आसपास की सफाई का महत्वपूर्ण योगदान है! 

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मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका स्वस्थ शरीर हैं इससे बड़ा जगत में कोई धन नहीं है यद्यपि बहुत लोग धन के पीछे अपना यथार्थ और भविष्य सब कुछ भुल जाते हैं। उनको बस सब कुछ धन ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अन्तहीन समय आने पर उन्हें जब तक ज्ञात होता है तब तक देर हो चुकी होती है। क्या मैंने थोड़ा सा समय अपने लिए जिया काश समय अपने लिए कुछ निकाल पाता तो आज इस अवस्था में मै नहीं होता जो परिवार का मात्र एक प्रमुख सहारा है वह आज दुसरे की आश लगाये बैठा है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह समय हम पर निर्भर करता है थोडा सा ध्यान चिन्तन करने के लिए अपने लिए उपयुक्त समय निकाल कर इस शारीरिक मापदंड को ठीक किया जाय। और शरीर को नुकसान से बचाया जाए और स्वास्थ्य रखा जाय और जीवन जीने की कला को समझा जाय।   vinaysinghsubansi.blogspot.com पर इसी पर कुछ हेल्थ टिप्स दिए गए हैं जो शायद आपके लिए वरदान साबित हो - धन्यवाद