मंगलवार

गृहस्थ आश्रम

बह । हमारे समाज में श्रेष्ठ आश्रमों में एक है इसको सबसे उपर श्रेष्ठ श्रेणी में रखा गया है गृहस्थ आश्रम क्या है और यह समाज के सभी आश्रमों मे श्रेष्ठ आश्रम गृहस्थ आश्रम क्यो माना गया है इसपर हम विस्तार पूर्वक निचे चर्चा करते हैं और इसकी विषेशताओ पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं इसका लाभ हमे कैसे प्राप्त होता है तथा इसकी मौलिक अधिकार मे हम रहकर कैसे अपने कर्मों को उच्च तथा भलि भात से परोपकार और हर धर्मों मे इसको उच्च तथा समाजिक एेकता का एक प्रमुख हिस्सा तथा संसार कल्याण का वरदान मानते हैं गृहस्थ जीवन का हिस्सा है यह आश्रम और सभी समाजिक कल्याण तथा संयुक्त परिवार की एक परिभाषा है इस आश्रम पर विस्तार पूर्वक विश्लेषण करते है। हमारे समाज में श्रेष्ठ आश्रमों में एक है इसको सबसे उपर श्रेष्ठ श्रेणी में रखा गया है गृहस्थ आश्रम क्या है और यह समाज के सभी आश्रमों मे श्रेष्ठ आश्रम गृहस्थ आश्रम क्यो माना गया है इसपर हम विस्तार पूर्वक निचे चर्चा करते हैं और इसकी विषेशताओ पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं इसका लाभ हमे कैसे प्राप्त होता है तथा इसकी मौलिक अधिकार मे हम रहकर कैसे अपने कर्मों को उच्च तथा भलि भात से परोपकार और हर धर्मों मे इसको उच्च तथा समाजिक एेकता का एक प्रमुख हिस्सा तथा संसार कल्याण का वरदान मानते हैं गृहस्थ जीवन का हिस्सा है यह आश्रम और सभी समाजिक कल्याण तथा संयुक्त परिवार की एक परिभाषा है इस आश्रम पर विस्तार पूर्वक विश्लेषण करते है।
गृहस्थ आश्रम - गृहस्थ आश्रम परिवार के कल्याण के साथ हमारे जीवन निर्वाह के कारक सभी परिवारों का एक समूह व सभी कार्य सभी का कल्याण के लिए हमारे समाज को बनाने में सभी दुखों का उपाय तथा संयुक्त परिवार का संरक्षण तथा सभी क्रम सभी कृया धर्म परोपकार दया दान धार्मिकता समाज कल्याण दुख सुख हिम्मत भलाई कठिनाइयों का सामना करना सुखो का आभाष तथा मोक्ष की प्राप्ति कर्मो का उत्थान जीवन जीने की कला हम और हमारा समाज इत्यादि आदि सभी प्रकार के कर्मो का ही आश्रमों ही गृहस्थ आश्रम कहलाता है
गृहस्थ जीवन - गृहस्थ जीवन का निर्वाह जीवन यापन करने की कला हम और परिवार की तरक्की समाज का उदय इसी से बना हुआ है गृहस्थ जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है सुख दुःख का आभास होता है यह परिवार के प्रति रुचिकर होकर उनका पालन पोषण तथा उनके साथ मिलकर कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमें गृहस्थ जीवन में ही मिलता है इसके प्रति हमारा नुकसान फायदा सभी प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़ता है और उससे संघर्ष करना पड़ता है परिवार का पालन करने के लिए हमें स्वस्थ रहने के लिए सभी प्रकार के भुख प्यास के लिए तत्पर रहना पड़ता है और उसकी कमियों को पूरा करने के लिए हमें संघर्षरत रहना पड़ता है इसमे दया धार्मिक विश्वास दान विश्वास के साथ समाजिक कार्यरत रहना पड़ता है और वह किसी भी स्थिति में सुधार के लिए हर प्रयत्न करना पड़ता है हमारे समाजिक परिवारिक गतिविधियों का ग्यान करते हुए उसके हर सदस्य को एकसुत्र धागे में बाधना पडता है गृहस्थ जीवन जहाँ हमे दुखों का सामना सुखों की अनुभूति होती है तथा कठीन से कठीन समय का सामना करना पड़ता है उससे सभी को उभारते हुए उसका सामना करना पड़ता है यह जीवन सुखमय और दुखमय कि आनुभुति करता है यही है गृहस्थ जीवन
समाज - समाज की स्थापना भी यही से शुरू हुई और हमारे द्वारा संचालित करने के लिए हर ब्यवस्थित समारोह हो या प्रजा तन्त्र हो जो यही से शुरू होती है समाज समूहों को कहते हैं तो प्रथम तो परिवार ही समाज है और यह इसकी सिढी है जहां से हम चढकर पूरे समाज की स्थापना होती है
लाभ - पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मोक्ष, ईश्वर, देश, काल, और हमारे कर्म, साधना, ज्ञान, विवाह, सांस्कृति रहन सहन, समाजिक स्थापना, इत्यादि,
लाभ - गृहस्थ जीवन में जीवन जीने की कला प्राप्त होती है तथा समय का सदुपयोग कर जीवन को कैसे बदलाव लाने के लिए हमें इसी मे रहकर जीवन के प्रति हर पहलू पर उतार चढ़ाव के साथ हमे ज्ञान और मनुष्य का कर्तव्य का आनन्द आभास होता है तथा जन समुदाय का ज्ञान होता है इसके साथ ही प्यार दुलार मनुष्यता पर गर्व महसूस यही से होता है इसमें त्याग और परिश्रम का आभास होता है कैसे सबको संयोजा जाता है और उसका निर्वाह कैसे किया जाता है सभी प्रकार से मनुष्यी ज्ञान यही से प्राप्त होता है।
धर्म - धर्म का अर्थ होता है जिवन के नियामतक तत्व हमारे रहन सहन रिति रिवाज से धर्म परिभाषित होता है हमारे संस्कृति हमारे संस्कार जो धर्म से परिभाषित होते हैं। जहां हमारे समाज में बहुत से धर्म है पुरे संसार में हर जगह हर देश का अलग अलग धर्म है लेकिन धर्म चाहे जो भी हो लेकिन सिखने को यही गृहस्थ जीवन से ही मिलता है पैदा होने के साथ जब हमे ज्ञान होता है कि हम मनुष्य जाति है और हमारा समाज धर्म क्या है ये सब बातें हमें यही से पता चलताी है तथा इसका ज्ञान होता है
काम -काम का अर्थ होता है जिवन की वैध कामनाएं हरेक मनुष्य के अन्दर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा काम है हिन्दू वैदिक पुराण के अनुसार काम सृष्टि के पूर्व मे जो एक अविभक्त तत्व था वह विश्ववरचना के लिए दो विरोधी भावो में आ गया इसी को भारतीय विश्वास मे यो कहा जाता है कि आरम्भ में प्रजापति अकेला था उसका मन नही लगा उसने अपने शरीर के दो भाग मे लिया वह आधे भाग स्त्री और आधे भाग पुरुष बन गया तब उसने आनंद का अनुभव किया वहीं से इसकी एक संज्ञा हमने आप को दी लेकिन जो भी इतिहास रहा हो सभी का ज्ञान हमे इसी गृहस्थ आश्रम या गृहस्थ जीवन में ही मिलती है हिन्दू वैदिक काल में इसका पूरा वर्णन किया गया है कि पारस्परिक आकर्षण ही काम का वास्तविक स्वरूप है प्राकृतिक रचनाओं में प्रत्येक स्त्री के भितर पुरुष की सत्ता है और प्रत्येक पुरुष के भितर स्त्री की सत्ता है ऋग्वेद मे इस तत्व की इसपष्ट स्वीकृति दी गयी है इस तत्व को अर्वाचीन मनोविज्ञान शास्त्री भी मानते हैं जो भी परिभाषित हो तथ्य यही जो भी काम का ज्ञान हमे होता है सब इसी गृहस्थ जीवन में ही होता है
अर्थ - अर्थ का मतलब होता है जीवन के भौतिक साधन अर्थ का अनर्थ हो गया है सही को गलत बताया है सभी प्रकार के परिभाषित शब्द का एक अर्थ होता है या यू कहे जीवन जीने का अर्थ क्या है और हम अपने उद्देश्य का क्या परिभाषित करना चाहते हैं हमारे जीवन की पद्धति को कैसे जीते हैं और उसका मतलब क्या है उसी को अर्थ से परिभाषित कर सकते हैं जहा भी हमे बदलाव की जरूरत होती है उसका भी एक अर्थ होता है कि किस लिये हमे बदलाव की जरूरत पडी जो भी
हो सभी को अपने जीवन का एक उद्देश्य और उसका अर्थ होना चाहिए जो कुछ अर्थ से सम्बंधित है जिसका ज्ञान हमे इसी गृहस्थ जीवन में होता है
धर्म - धर्म का अर्थ है जीवन के नियमों का तत्व ही धर्म से परिभाषित होता है
क्रोध - क्रोध मनुष्य जाति की सबसे कमजोर प्रवृति है जहा हमे इससे दुस परिणामों का सामना करना पड़ता है वही इससे हमारे सेहत पर प्रभाव पडता है क्रोध का कारण अपनी कमजोरी है जो अपने कर्तव्यो का निर्वाह नहीं करते हैं और अपनी प्रतिक्रियाएं को या जिम्मेदारीयो को दूसरे पर ठोकते है क्रोध का कारण बन जाती है जो भी हो क्रोध हमे अपनी जिम्मेदारीयो के द्वारा उसका निर्वाह के प्रति इसी आश्रम का ही दायित्व रूप है जो गृहस्थ जीवन की देन है।
लोभ - लोभ भी यही से परिभाषित होती है लोभ जो परिवारिक जिम्मेदारी से आता है क्रोध हमे अपनी जिम्मेदारीयो के द्वारा उसका निर्वाह के प्रति इसी आश्रम का ही दायित्व रूप है जो गृहस्थ जीवन की देन है। मन निरमुल आशंकाऔ से घिरा रहता है कि हमारे शरीर के भौतिक सुख की प्राप्ति की कामना के साथ हर भौतिक सुविधाओं का हम अधिक से अधिक भोग करना चाहते हैं जिसके कारण हमे लोभ की उपज होती है और यह आज के दौर में परिवारिक सुख सुविधाओं की देन है परिवार की आकांक्षाओं को पूर्ण करना लोभ की एक मनोदशा है
मोह माया - मोह माया की उपज भी इसी गृहस्थ जीवन में उपज होती है और उसका परिवारिक सम्बन्ध है मोह हमारे जीवन में तब पाया जाता है जहा एक सूली की प्यार की उत्पत्ति हुई जहां अपना पराया का आभास हुआ जहां अपने भौतिक सुखो का उपयोग हुआ मन की जिज्ञासा को शांति नही मिली और उसको और बढाया जहां पति-पत्नी परिवार माता पिता औलाद स्त्रियां सभी के प्रति प्यार की उपज मोह माया है जो परिवारजनों के प्रति उनको सुख सुविधाओं का प्रदान करना है इश्वर रूपी मे जहा मोह माया को मोक्ष के लिए प्रबंधित किया है वही इसको कारण भी माना है मोह जहां आता है वहा भौतिक सच का कारण होता है आज के इस दौर में जहां भौतिकवाद हमें जकड़ रखा है और इसके प्रति हमारी जिज्ञासा और फैल रही है सांसारिक संसाधन जहाँ मोह को अपने मजबूत बनाने मे लगा है वही हम पुराने समय का जीवन स्तर को छोडते जा रहे हैं अपनी संस्कार को पिछे छोडते जा रहे हैं इन्सान की काम  लालसा दैत्यिक रूप लेता जा रहा है भौतिक हम पर भारी होता जा रहा है जो न सिर्फ हमारे वाद को खत्म कर रहा है बल्कि हमारे अन्तर आत्मा को भी व्यक्त विभक्त कर रहा है इसी परिवारिक का एक प्रमुख हिस्सा है मोह माया जो गृहस्थ आश्रम में एक लालच की वजह और भौतिक सुख सुविधाओं का कारण बन गया है जो हमें इसी गृहस्थ जीवन में प्राप्त होता है
मोक्ष - मोक्ष का अर्थ होता है सभी प्रकार के बन्धन से मुक्ति ही मोक्ष की प्राप्ति होती है इसका ज्ञान गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही हमे इसका ज्ञान होता है और हम इस परिवारिक तथा समाजिक बन्धनो से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति होगी लेकिन हमारे मोक्ष को हमारे कर्त्तव्य के आधार पर मिलनी चाहिए इस लिए हमारे पुराणों में कुछ तथ्य दिये गये हैं कि मानव जाति सभी जातियों के कर्मो के आधार पर ही फल मिलते हैं तो कर्म ही मनुष्य का वह मार्ग है जहाँ से हमे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और इंसान बुरा भला करने परोपकार करने सत्य का निवारण करने अपने को सही रास्ते द्वारा इश्वर के प्रति रुचिकर होकर पुरुषोत्तम मर्यादाओं के नियमों के पालन करके अहम को त्याग कर इंसान की भलाई करके अपने कर्मो को अच्छा बनाता है और उसे फल के प्राप्ति के बिना हमेशा सच्चा ओर सदा अग्रसर रहता है जैसे कि हमारे गीता उपदेश मे कहा गया है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो फल तो अपने आप मिलते रहेगे और केवल तुम अपना कर्म करते जाओ इसी प्रकार सत्य के साथ आपको सही उपयोग कर अपने आप ही ईश्वरीय मोक्ष को प्राप्त होगा जो गृहस्थ आश्रम में या गृहस्थ जीवन में अपने जिम्मेदारीयो का सत्य के साथ निर्वाह करता है उसको सब प्रकार के मोक्ष की प्राप्ति होती है
ईश्वर या प्रभु भगवान - इश्वर के रूप के बारे में अनेक ऐसी धारणाए है जो भगवान के अलग अलग रुपो को प्रदर्शित करती है लेकिन सब का एक ही सत्य है कि इस जगत को उसी के द्वारा रचा गया जहां हमे इस बात के लिए हमें अलग अलग धारणाओ के आधार पर इस बात को सत्यापित करने के लिए सभी धर्मो की गहराई तक जा कर उसकी ब्याखान करेगे तो एक ही परिणाम मिलते हैं कि इश्वर जगत ब्यापत है इश्वर के रूप अलग अलग परिभाषित हुए हैं कही इश्वर को आकार रुप दिया गया कही इनके रुपो को अलौकिक कहा गया कही इनको जगत के कण ब्यापत माना गया लेकिन धारणाए जो भी हो सब का विश्वास प्रभु के उपर है आज के इस युग में जहां विज्ञान हमे कुछ ऐसी होनी को परिभाषित नही कर पाया है कि जो इतिहास है उसका वास्तविक परिणाम था या है वह उस तक नही पहुंच सकता जैसे कई बार पृथ्वी का डगमगाने का उसके होने का अनुमान बस लगाता है भुक्म्म की स्थिति को वह रोक नही सकता मनुष्य के मृत्यु पर विजय प्राप्त नही कर सकता है जो न सिर्फ हमारे मन को परिमाणित करता है वरन यह क्षैतिज के धरा पर कुछ यैसी प्रतिक्रियाएं है जो वह चाह कर भी वह वहा तक नही पहुंच सकता है हिन्दू धर्म के अनुसार जगत ब्याप्त इश्वर के अनेक रूप है वह जगत के हर कण कण मे बसा है और उसके बिना पत्ता भी नही हिल सकता है सृष्टि रचियता पालन करता व उसका अन्त रुप देना यह सब ईश्वरीय कारक है इश्वर के रूप को सिद्ध करना है तो इसमे इस बात की पुष्टि करनी होगी कि क्यू नहीं माने जो है या नही इसको क्या हमारे विज्ञान युग सिद्ध कर पाये हैं और क्या उनकी पकड इस सृष्टि पर हो गयी है हमारे जीवन की पद्धति इस शरीर मे विद्वमान है मनुष्य का दिमाग ब्रह्माण्ड है जो कुछ वह करता है और वह जो कुछ खोज करता है वह इसी की उपज है शरीर की क्रिया तरल पदार्थ के वजह से है उसी के द्वारा संचालित होती है वह दृष्टि से देखता है और जो वह नही देख पाता उसे वह जानता भी नही और मानता भी नही तो क्या हम जहाँ तक देखते हैं वही सत्य है और बाकी कुछ नहीं है ईश्वर के प्रति हमारे अर्थ शास्त्री हो या मनोवैज्ञानिक हो या समाज शास्त्री हो या दर्शन शास्त्री हो सब के अलग अलग तौर पर रास्ते बताये गये हैं और वह किसी भी स्थिति को नियंत्रित निर्देश माध्यम दिये हैं लेकिन हमारी संस्कृति हो या विरासत में दी गयी परिभाषाएं हो सब की एक ही बात उतपन्न की स्थिति है वह है ईश्वर तो ईश्वर एक शब्द नही हो सकता है जो पुरे संसार में हर धर्म हर संस्कृतिकर्मी मे बसा पडा है यह आज नहीं वरन कई युगों से हमारे हर शब्द मे आता है और आता रहेगा दिन रात पृथ्वी का घुमना चक्कर लगाने का कारण क्या है और वह क्यू है जल थल आकाश वायु धरा की उत्पत्ति कैसे हुई और क्यू हुया संसार में मनुष्य बनाया स्त्रियों को क्यू बनाया कैसे बना पशु पक्षी जिव जन्तु हर कण क्यू बनाया जहां तक विज्ञान का परिभाषित परिणाम हमको सिद्ध नही कर पाए कुछ उदाहरण के द्वारा केवल अनुमानित है तो अनुमान क्या वह तो एक मस्तिष्क की उपज है और कुछ नहीं हर प्राणी का निरन्तर कण ब्याप्त अग्रसर होता रहता है कुछ ऐसी मृत्यु कोशिकाओं है जिनका विकास होता रहता है और वह हमेशा से है और उनकी पकड जगत ब्याप्त ईश्वर नियम से है जो सदा ही ब्याप्त कर विस्तारित है उनका होना कोई संयोग नही है और वह संयोग हो ही नहीं सकता जिसका ईश्वरीय कारक है
ईश्वर की परिभाषा जो भी दी गई है और कारक जो भी रहा हो इसका ज्ञान का कारण हमे गृहस्थ आश्रम में ही मिलता है और इसकी उपज हमे गहन चिंतन की स्थिति को पैदा करती है गृहस्थ आश्रम या गृहस्थ जीवन में ही प्राप्त होता है।
देश संसार -  सर्व प्रथम गृहस्थ जीवन के आधार पर समाज और समाज के आधार पर देश बनता है और देश से संसार बनता है तो सर्व प्रिय गृहस्थ जीवन के ही द्वारा संचालित हर प्रकार है
गृहस्थ जीवन को सबसे ऊपर रखते हुए हर कर्मो की शुरुआत होती है गृहस्थ जीवन के आधार पर ही हमे हर परिणाम हासिल होते हैं इसी के द्वारा हमारे कर्मो का फल मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए रास्ता मिलता है तो सभी ब्यवसथित व अब्यवस्थित सभी प्रकार गृहस्थ जीवन के द्वारा संचालित होते हैं
अन्त में सिद्ध करने के लिए हम इस निश्चित रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि गृहस्थ जीवन हमारी चाभी है जहा से हमे चलने की सिढी है। मन निरमुल आशंकाऔ से घिरा रहता है हर स्थिति उसे अपने साथ ले जाना चाहते हैं और हमारा जीवन जीने की कला हम और हमारा समाज के लिए अन्त का परिणाम यही है कि गृहस्थ जीवन प्रथम पथ है और उसपे चल कर हम हर मार्ग तक पहुचेगे।
kolkata Singhi Bagan, Singhi Bagan

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मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका स्वस्थ शरीर हैं इससे बड़ा जगत में कोई धन नहीं है यद्यपि बहुत लोग धन के पीछे अपना यथार्थ और भविष्य सब कुछ भुल जाते हैं। उनको बस सब कुछ धन ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अन्तहीन समय आने पर उन्हें जब तक ज्ञात होता है तब तक देर हो चुकी होती है। क्या मैंने थोड़ा सा समय अपने लिए जिया काश समय अपने लिए कुछ निकाल पाता तो आज इस अवस्था में मै नहीं होता जो परिवार का मात्र एक प्रमुख सहारा है वह आज दुसरे की आश लगाये बैठा है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह समय हम पर निर्भर करता है थोडा सा ध्यान चिन्तन करने के लिए अपने लिए उपयुक्त समय निकाल कर इस शारीरिक मापदंड को ठीक किया जाय। और शरीर को नुकसान से बचाया जाए और स्वास्थ्य रखा जाय और जीवन जीने की कला को समझा जाय।   vinaysinghsubansi.blogspot.com पर इसी पर कुछ हेल्थ टिप्स दिए गए हैं जो शायद आपके लिए वरदान साबित हो - धन्यवाद