मंगलवार

नदिया के पार Nadiya Ke Paar

नदिया के पार  (Nadiya Ke Paar)

नदिया के पार फिल्म की कुछ सुनी अनसुनी जानकारियां ? 

नदिया के पार फिल्म उत्तर भारत में बसे दो गाँवों की कहानी है और क्योंकि इस फिल्म को एकदम जीवंत भाव देने के लिए वैसे ही एक आदर्श लोकेशन मैं शूटिंग करने की आवश्यकता थी तो अब ऐसे में उत्तर प्रदेश से बढ़िया लोकेशन और क्या हो सकती थी? इसलिए फिल्म को शूट करने के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के हिस्से को चुना गया। नदिया के पार फिल्म की 90% शूटिंग जौनपुर के केराकत तहसील के विजयपुर और राजेपुर नामक गांवों में हुई। ये दोनों गांव सई नदी और गोमती नदी के किनारों पर बसे हैं। फिल्म में जिस नदी की बात की जाती है वह यही दो नदियां है। इसी स्थान पर सई नदी और गोमती नदी आपस में मिल जाती हैं।

आइये नदिया के पार फिल्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।
1. केराकत नामक गांव यानी जहां नदिया के पार फिल्म की शूटिंग हुई थी वहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग लगभग डेढ़ दो महीने तक चली। फिल्म की पूरी टीम उस गांव में ही लगभग डेढ़ दो महीने तक रहे।

2. फिल्म की पूरी टीम का गांव के लोगो के साथ बहुत ही गहरा रिश्ता बन गया था। 

3. गांव के स्थानीय निवासी बताते हैं की राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक ताराचंद बड़जात्या ने गाँव के लोगो को उस दौर में फिल्म की शूटिंग करने के लिए ८ लाख रुपये भी देने की पेशकश की थी मगर क्योंकि फिल्म के यूनिट मैनेजर रामजनक सिंह उसी गाँव के निवासी थे और उन्हें अपनी ही फिल्म कंपनी के मालिक से अपने ही गाँव में शूटिंग करने के लिये पैसे लेने का दिल नहीं था इसीलिए उन्होंने फिल्म बनाने के लिए उनके गाँव की लोकेशन का इस्तेमाल करने के लिए एक भी रूपया नहीं लिया था।

4. गाँव वाले कहते हैं की फिल्म की पूरी शूटिंग के दौरान वहाँ पर हमेशा पुलिस तैनात रहती थी क्योंकि कभी कभी शूटिंग देखने आयी भीड़ बेकाबू हो जाती थी और उन्हें कण्ट्रोल करने का काम केवल पुलिस ही कर सकती थी।

5. फिल्म के होली वाले गीत जोगी जी धीरे धीरे के लिए कई बोरियां भर भर के रंग और गुलाल मंगाए गए थे और गाने में दिख रहे ज़्यादातर लोग वही के ग्रामीण ही थे। 

6. नदिया के पार फिल्म में भाषा अवधी और भोजपुरी है, नायक सचिन मराठी हैं और गायक जसपाल सिंह जी पंजाबी हैं। सचमुच ये हैं अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण। 

7. जसपाल जी के पंजाबी होने के बाद भी उनकी की आवाज़ में साँची कहें तोरे आवन से हमरे और कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया जैसे देहाती गाने सुनने पर ऐसा लगता है जैसे कोई अवधी या भोजपुरी गवैय्या ही गा रहा हो।

8. ऐसा कहा जाता है की जब फिल्म की शूटिंग ख़तम हो गयी थी और फिल्म की टीम गाँव छोड़ कर जा रही थी तो जाते हुए पुरे गाँव के लोग ही नहीं बल्कि फिल्म का पूरा स्टाफ - पूरी की पूरी फिल्म की टीम के लोग - गाँव के लोगो से बिछड़ने के दुःख में फूट फूट के रोये।  

महान संगीतकार रविंद्र जैन जी के संगीत से सजे नदिया के पार फिल्म के मिट्टी की खुशबू से ओतप्रोत दिल को छू लेने वाले कालजई गाने...

(1) जब तक पूरे न हों फेरे सात - हेमलता
(2) बबुआ ओ बबुआ - हेमलता
(3) जोगी जी धीरे धीरे - जसपाल सिंह
(4) साँची कहें तोरे आवन से हमरे - जसपाल सिंह
(5) गुंजा रे चन्दन -  सुरेश वाडकर
(6) कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया - हेमलता और जसपाल सिंह

मुझे यकीन है इन कालजई गानो के हर गीत के साथ हमारी यादों का कोई ना कोई खुबसूरत किस्सा जरूर जुड़ा होगा और आप सभी इन गानों को इस समय गुनगुनाते हुए उन यादों को याद करते हुए मुस्कुरा रहे होंगे..

उम्मीद हैं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। अंत में बस इतना ही कहना चाहू की नदिया के पार फिल्म को बने आज लगभग ४० साल होने को हैं मगर यह फिल्म आज भी चाहे जितनी बार भी देखि जाए दिल नहीं भरता।

दरसल फिल्म देखने पर ऐसा लगता ही नहीं की कोई शूटिंग हो रही हैं और कोई एक्टिंग कर रहा है। ऐसा लगता हैं मानो गाँव के लोग अपनी ज़िन्दगी जी रहे हैं और बस किसी ने बिना बताये उनकी ज़िन्दगी को कैमेरा में रिकॉर्ड कर लिया है।

BHAGWAT GEETA

 *🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।३१।।*

*यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥*

*यया–* जिसके द्वारा; *धर्मम्–* धर्म को; *अधर्मम्–* अधर्म को; *च–* तथा; *कार्यम्–* करणीय; *च–* भी; *अकार्यम्–* अकरणीय को; *एव–* निश्चय ही; *च–* भी; *अथवा-वत् –* अधूरे ढंग से; *प्रजानाति–* जानती है; *बुद्धिः–* बुद्धि; *सा–* वह; *पार्थ–* हे पृथापुत्र; *राजसी–* रजोगुणी |

*हे पृथापुत्र! जो बुद्धि धर्म तथा अधर्म,करणीय तथा अकरणीय कर्म में भेद नहीं कर पाती,वह राजसी है ।*
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।३०।।*

*प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये । बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥*

*प्रवृत्तिम्–* कर्म को; *च–* भी; *निवृत्तिम्–* अकर्म को; *च–* तथा; *कार्य–* करणीय; *अकार्य–* तथा अकरणीय में; *भय–* भय; *अभये–* तथा निडरता में; *बन्धम्–* बन्धन; *मोक्षम्–* मोक्ष; *च–* तथा; *या–* जो; *वेत्ति–* जानता है; *बुद्धिः–* बुद्धि; *सा–* वह; *पार्थ–* हे पृथापुत्र; *सात्त्विकी–* सतोगुणी |

*हे पृथापुत्र! वह बुद्धि सतोगुणी है, जिसके द्वारा मनुष्य यह जानता है कि क्या करणीय है और क्या नहीं है, किसे डरना चाहिए और किसे नहीं, क्या बाँधने वाला है और क्या मुक्ति देने वाला है |*

*तात्पर्य :-* शास्त्रों के निर्देशानुसार कर्म करने को या उन कर्मों को करना जिन्हें किया जाना चाहिए, प्रवृत्ति कहते हैं | जिन कार्यों का इस तरह निर्देश नहीं होता वे नहीं किये जाने चाहिए | जो व्यक्ति शास्त्रों के निर्देशों को नहीं जानता, वह कर्मों तथा उनकी प्रतिक्रिया से बँध जाता है | जो बुद्धि अच्छे बुरे का भेद बताती है, वह सात्त्विकी है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२९।।*

*बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥*

*बुद्धेः–* बुद्धि का; *भेदम्–* अन्तर; *धृतेः–* धैर्य का; *च–* भी; *एव–* निश्चय ही; *गुणतः–* गुणों के द्वारा; *त्रि-विधम्–* तीन प्रकार के; *शृणु–* सुनो; *प्रोच्यमानम्–* जैसा मेरे द्वारा कहा गया; *अशेषेण–* विस्तार से; *पृथक्त्वेन–* भिन्न प्रकार से; *धनञ्जय–* हे सम्पत्ति के विजेता |

*हे धनञ्जय! अब मैं प्रकृति के तीनों गुणों के अनुसार तुम्हें विभिन्न प्रकार की बुद्धि तथा धृति के विषय में विस्तार से बताऊँगा | तुम इसे सुनो |*

*तात्पर्य :-* ज्ञान, ज्ञेय तथा ज्ञाता की व्याख्या प्रकृति के गुणों के अनुसार तीन-तीन पृथक् विभागों में करने के बाद अब भगवान् कर्ता की बुद्धि तथा उसके संकल्प (धैर्य) के विषय में उसी प्रकार से बता रहे हैं |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२८।।*

*अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः । विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥*

*अयुक्तः–* शास्त्रों के आदेशों को न मानने वाला; *प्राकृतः–* भौतिकवादी; *स्तब्धः–* हठी; *शठः–* कपटी; *नैष्कृतिकः–* अन्यों का अपमान करने में पटु; *अलसः–* आलसी; *विषादी–* खिन्न; *दीर्घ-सूत्री–* ऊँघ-ऊँघ कर काम करने वाला, देर लगाने वाला; *च–* भी; *कर्ता–* कर्ता; *तामसः–* तमोगुणी; *उच्यते–* कहलाता है |

*जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* शास्त्रीय आदेशों से हमें पता चलता है कि हमें कौन सा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए | जो लोग शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करके अकरणीय कार्य करते हैं, प्रायः भौतिकवादी होते हैं | वे प्रकृति के गुणों के अनुसार कार्य करते हैं, शास्त्रों के आदेशों के अनुसार नहीं | ऐसे कर्ता भद्र नहीं होते और सामान्यतया सदैव कपटी (धूर्त) तथा अन्यों का अपमान करने वाले होते हैं | वे अत्यन्त आलसी होते हैं, काम होते हुए भी उसे ठीक से नहीं करते और बाद में करने के लिए उसे एक तरफ रख देते हैं, अतएव वे खिन्न रहते हैं | जो काम एक घंटे में हो सकता है, उसे वे वर्षों तक घसीटते हैं-वे दीर्घसूत्री होते हैं | ऐसे कर्ता तमोगुणी होते हैं |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२७।।*

*रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः ।हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥*

*रागी–* अत्यधिक आसक्त; *कर्म-फल–* कर्म के फल की; *प्रेप्सुः–* इच्छा करते हुए; *लुब्धः–* लालची; *हिंसा-आत्मकः–* सदैव ईर्ष्यालु; *अशुचिः–* अपवित्र; *हर्ष-शोक-अन्वितः–* हर्ष तथा शोक से युक्त; *कर्ता–* ऐसा कर्ता; *राजसः–* रजोगुणी; *परिकीर्तितः–* घोषित किया जाता है |

*जो कर्ता कर्म तथा कर्म-फल के प्रति आसक्त होकर फलों का भोग करना चाहता है तथा जो लोभी, सदैव ईर्ष्यालु, अपवित्र और सुख-दुख से विचलित होने वाला है, वह राजसी कहा जाता है |*

*तात्पर्य :-* मनुष्य सदैव किसी कार्य के प्रति या फल के प्रति इसलिए अत्यधिक आसक्त रहता है, क्योंकि वह भौतिक पदार्थों, घर-बार, पत्नी तथा पुत्र के प्रति अत्यधिक अनुरक्त होता है | ऐसा व्यक्ति जीवन में ऊपर उठने की आकांक्षा नहीं रखता | वह इस संसार को यथासम्भव आरामदेह बनाने में ही व्यस्त रहता है | सामान्यतः वह अत्यन्त लोभी होता है और सोचता है कि उसके द्वारा प्राप्त की गई प्रत्येक वस्तु स्थायी है और कभी नष्ट नहीं होगी | ऐसा व्यक्ति अन्यों से ईर्ष्या करता है और इन्द्रियतृप्ति के लिए कोई भी अनुचित कार्य कर सकता है | अतएव ऐसा व्यक्ति अपवित्र होता है और वह इसकी चिन्ता नहीं करता कि उसकी कमाई शुद्ध है या अशुद्ध | यदि उसका कार्य सफल हो जाता है तो वह अत्यधिक प्रसन्न और असफल होने पर अत्यधिक दुखी होता है| रजोगुणी कर्ता ऐसा ही होता है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२६।।*

*मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥*

*मुक्त-सङगः–* सारे भौतिक संसर्ग से मुक्त; *अनहम्-वादी–* मिथ्या अहंकार से रहित; *धृति–* संकल्प; *उत्साह–* तथा उत्साह सहित; *समन्वितः–* योग्य; *सिद्धि–* सिद्धि; *असिद्धयोः–* तथा विफलता में; *निर्विकारः–* बिना परिवर्तन के; *कर्ता–* कर्ता; *सात्त्विकः–* सतोगुणी; *उच्यते –* कहा जाता है |

*जो व्यक्ति भौतिक गुणों के संसर्ग के बिना अहंकाररहित, संकल्प तथा उत्साहपूर्वक अपना कर्म करता है और सफलता अथवा असफलता में अविचलित रहता है, वह सात्त्विक कर्ता कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* कृष्णभावनामय व्यक्ति सदैव प्रकृति के गुणों से अतीत होता है | उसे अपना को सौंपे गये कर्म के परिणाम की कोई आकांक्षा नही रहती, क्योंकि वह मिथ्या अहंकार तथा घमंड से परे होता है | फिर भी कार्य के पूर्ण होने तक वह सदैव उत्साह से पूर्ण रहता है | उसे होने वाले कष्टों की कोई चिन्ता नहीं होती, वह सदैव उत्साहपूर्ण रहता है | वह सफलता या विफलता की परवाह नहीं करता, वह सुख-दुख में समभाव रहता है | ऐसा कर्ता सात्त्विक है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२५।।*

*अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥*

*अनुबन्धम्–* भावी बन्धन का; *क्षयम्–* विनाश; *हिंसाम्–* तथा अन्यों को कष्ट; *अनपेक्ष्य–* परिणाम पर विचार किये बिना; *च–* भी; *पौरुषम्–* सामर्थ्य को; *मोहात्–* मोह से; *आरभ्यते–* प्रारम्भ किया जाता है; *कर्म–* कर्म; *यत्–* जो; *तत्–* वह; *तामसम्–* तामसी; *उच्यते–* कहा जाता है |

*जो कर्म मोहवश शास्त्रीय आदेशों की अवहेलना करके तथा भावी बन्धन की परवाह किये बिना या हिंसा अथवा अन्यों को दुख पहुँचाने के लिए किया जाता है, वह तामसी कहलाता है |*

*तात्पर्य :-* मनुष्य को अपने कर्मों का लेखा राज्य को अथवा परमेश्र्वरके दूतों को, जिन्हें यमदूत कहते हैं, देना होता है | उत्तरदायित्वहीन कर्मविनाशकारी है, क्योंकि इससे शास्त्रीय आदेशों का विनाश होता है | यह प्रायः हिंसा परआधारित होता है और अन्य जीवों के लिए दुखदायी होता है | उत्तरदायित्व से हीन ऐसा कर्म अपने निजी अनुभव के आधार पर किया जाता है | यह मोह कहलाता है | ऐसा समस्त मोहग्रस्त कर्म तमोगुण के फलस्वरूप होता है |
**🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे🙏*
*📚श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप*
*📒अध्याय १८ (उपसंहार-सन्यास की सिद्धि)*
*🧾श्लोक संख्या ।।२४।।*

*यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुनः । क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥*

*यत्–* जो; *तु–* लेकिन; *काम-ईप्सुना–* फल की इच्छा रखने वाले के द्वारा; *कर्म–* कर्म; *स-अहङ्कारेण–* अहंकार सहित; *वा–* अथवा; *पुनः–* फिर; *क्रियते–* किया जाता है; *बहुल आयासम्–* कठिन परिश्रम से; *तत्–* वह; *राजसम्–* राजसी; *उदाहृतम्–* कहा जाता है |

*लेकिन जो कार्य अपनी इच्छा पूर्ति के निमित्त प्रयासपूर्वक एवं मिथ्याअहंकार के भाव से किया जाता है, वह रजोगुणी कहा जाता है |

सोमवार

अबीर, गुलाल और रंग खेलते हुए निकलते है काशी में होली सात मार्च को और अन्य जगहों पर आठ मार्च को मनेगी।होलिका दहन सात मार्च को होलिकादहन, 2023

वाराणसी में 7 को और पूरे देश में 8 मार्च को मनेगी होली , जानिए कारण?
होली का रंगारंग त्योहार इस बार सात मार्च को वाराणसी में और 8 मार्च को पूरे देश भर में मनाई जाएगी। वाराणसी में होलिका दहन के दूसरे दिन चौसठ्ठी देवी की यात्रा की परंपरा होने के कारण होली का त्योहार सात को मनाया जाएगा, जबकि उदया तिथि में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा का मान 8 मार्च को होने के कारण काशी को छोड़कर देश भर में होली का त्योहार मनेगा।  बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा छह मार्च की शाम को 4:18 बजे से लगेगी और सात मार्च की शाम को 5:30 बजे समाप्त हो रही है।
ऐसे में प्रदोष काल व्यापिनी पूर्णिमा में होलिका दहन छह मार्च को ही किया जाएगा। पूर्णिमा के साथ भद्रा होने के कारण भद्रा के पुच्छकाल में होलिका दहन का मुहूर्त रात्रि में 12:30 बजे से 1:30 बजे तक मिलेगा। पूर्णिमा सात मार्च को समाप्त होने के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा शाम को शुरू हो रही है लेकिन होली उदया तिथि में मनाने का शास्त्रीय विधान है। ऐसे में आठ मार्च को होली मनाई जाएगी। प्रो. विनय पांडेय का कहना है कि वाराणसी की बात करें तो यहां में होली के लिए अलग परंपरा है। काशी में जिस रात को होलिका दहन होता है, उसके अगले दिन चाहे प्रतिपदा हो चाहे पूर्णिमा हो होली मनाई जाती है। यह ऐसी परंपरा है जो शास्त्र से हटकर है। होलिका दहन के  दूसरे दिन काशीवासी चौसठ्ठी देवी योगिनी की यात्रा निकालते हैं । 
जब होली जलाकर यात्रा के लिए निकलते हैं तो अबीर, गुलाल और रंग खेलते हुए निकलते हैं। चौसठ्ठी देवी केवल काशी में ही विराजती हैं, इसलिए इस परंपरा का पालन भी काशीवासी ही करते हैं। ऐसे में केवल काशी में होली सात मार्च को और अन्य जगहों पर आठ मार्च को मनेगी। ज्योतिषाचार्य पं. विमल जैन ने बताया कि छह मार्च को भद्रा शाम 4:18 मिनट से अर्द्धरात्रि के पश्चात 5:15 बजे तक रहेगा। भद्रा पुच्छ की शुुरुआत 12:30 बजे से होगी और स्नान, दान और व्रत का पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा सात मार्च को मनाई जाएगी। होलिकापूजन के पूर्व व पश्चात गंगाजल या शुद्ध जल अर्पित करने का विधान है। इस दिन भगवान नृसिंह की भी पूजा-अर्चना का विधान है।होलिका दहन के समय होलिका की परिक्रमा करने का विधान है। होलिका के चारों ओर तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को लपेटना चाहिए। होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली मिलती है। होलिका की भभूत संपूर्ण शरीर पर लगाकर स्नान करने से आरोग्य सुख मिलता है।पं. जैन के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र स्वरूप में माने गए हैं। इसके कारण इन आठ दिनों में कोई मंगल कार्य नहीं होते हैं। 27 फरवरी से होलाष्टक की शुरूआत होगी और सात मार्च को इसका समापन होगा। काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी ने बताया कि छह मार्च को फाल्गुन शुक्लपक्ष की प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन होगा। काशी में प्रकाशित श्री ऋषिकेश पंचांग, श्री गणेश आपा पंचांग, विश्व पंचांग बीएचयू, ज्ञानमंडल सौर पंचांग, चिंताहरण पंचांग तथा वाराणसी के बाहर प्रकाशित होने वाले पंचांग पं. बंशीधर ज्योतिष पंचांग, श्री मार्तंड पंचांग, कैलाश पंचांग, पंचांग दिवाकर, पं. श्री वल्लभ मनिराम पंचांग और कालनिर्णय पंचांग के अनुसार छह मार्च को ही होलिकादहन होगा।काशी अन्यत्र प्रकाशित होने वाले श्री वशिष्ठ पंचांग और श्री ब्रजभूमि पंचांग के अनुसार सात मार्च को होलिकादहन दर्शाया गया है।

मंगलवार

1600 ईस्वी, हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं ?

आप शायद ही जानते होंगे कि हनुमान चालीसा जेल में लिखी गई थी... 

हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं। नहीं तो जानिये, शायद कुछ ही लोगों को यह पता होगा?
 
पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना तो सभी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं, पर यह कब लिखा गया, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।
बात 1600 ईस्वी  की है यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था।
एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं। यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं।

तब बीरबल ने बताया, इन्होंने ही रामचरित मानस का अनुवाद किया है, यह रामभक्त तुलसीदास जी है, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।

बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को तुलसीदास जी के पास भेजा और  तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना और लालकिले जाने के लिए  साफ मना कर दिया। जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में लालताल हो गया, और उन्होंने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़बा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदास जी जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसी दास ने कहा मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। अकबर यह सुन कर आगबबूला हो गया और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।
दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। लालकिले में त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है, तब बीरबल ने कहा हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को कल कोठरी से निकलवाया। और जंजीरे खोल दी गई। तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है।

मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मैं रोता जा रहा था। और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में  होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।
अकबर बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।
आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं। और हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है। और सभी के संकट दूर हो रहे हैं। हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता हैl

सोमवार

आखिर पता चल ही गया, क्या होता है मौत के बाद!

जानकारी विशेष

आखिर पता चल ही गया, क्या होता है मौत के बाद!

मरने से 20 मिनट बाद ज़िंदा हुए शख्स ने कर दिया खुलासा

स्कॉट ड्रूमंड  ने दुनिया को पहली बार ये बताया है कि मरने के बाद इंसान एक दूसरी दुनिया में जाता है. वे 20 मिनट के लिए वहां गए थे  और कहते हैं कि संसार में वापस नहीं आना चाहते थे.


ये सवाल सृष्टि के आरंभ से ही इंसान के मन में घूमता रहता है कि आखिर मौत के बाद क्या होता होगा?  पाप-पुण्य, कर्म-प्रारब्ध जैसी तमाम चीज़ें हम ज़िंदगी भर सुनते हैं और निभाते हैं. क्या मौत के बाद वाकई इन सबका हिसाब होता है? मरने के बाद लोग कहां जाते हैं और वहां उन्हें क्या मिलता है? ऐसे बहुत सारे सवालों का जवाब सिर्फ वही शख्स दे सकता है, जिसने इस दुनिया को विदा कहा हो. अब मुद्दा ये है कि मरने के बाद भी भला कोई ज़िंदा होता है, जो हमें ये सब पता सके?

आपको जानकर हैरानी होगी कि एक शख्स ने इन सब सवालों के जवाब दिए हैं क्योंकि वो खुद मरने से 20 मिनट बाद ज़िंदा हो गया.  60 साल से ज्यादा की ज़िंदगी जी चुके स्कॉट ड्रूमंड  ने दुनिया के सामने ये खुलासा किया है कि उनकी मौत तब हुई थी, जब वे 28 साल के थे. हालांकि ये महज 20 मिनट के लिए हुआ था और फिर वो अपने शरीर में वापस आ गए थे.

20 मिनट की मौत से समझाया रहस्य

स्कॉट ड्रूमंड की उम्र 28 साल की थी, जब उनका एक्सीडेंट स्कीइंग के दौरान हुआ था. उनके हाथ का अंगूठा इस एक्सीडेंट में टूट गया था. इसका ऑपरेशन होते वक्त नर्स की छोटी सी गलती से उनकी जान चली गई थी. अब बूढ़े हो चुके स्कॉट बताते हैं कि उन्होंने नर्स को डरकर भागते देखा और डॉक्टर्स को बुलाते हुए सुना. घटना के 20 मिनट बाद उन्होंने खुद को जिंदा पाया, जबकि इसके बीच के उनके अनुभव ने बताया कि वे दूसरी दुनिया की सैर कर चुके थे. भगवान ने उन्हें वापस ये कहकर भेजा कि अभी उनका वक्त नहीं आया है.
मरने के बाद क्या होता है?

  बातचीत करते हुए स्कॉट भावुक हो जाते हैं और बताते हैं कि वे पहली बार दुनिया को मरने के बाद का अनुभव बता रहे हैं. इससे पहले अपनी पत्नी और दोस्तों को उन्होंने ये एक्सपीरियंस  बताया था. स्कॉट बताते हैं कि उन्होंने जब नर्स को अपने मरने के बारे में चिल्लाते हुए सुना, उसके बाद ही उन्हें महसूस हुआ कि उनके बगल में कोई अदृश्य शक्ति थी. उस शक्ति ने उन्हें पलक झपकते ही एक बेहद खूबसूरत मैदान में खड़ा कर दिया. वे लगातार उस अदृश्य शक्ति के पीछे-पीछे जा रहे थे. यहां सुंदर और रंग-बिरंगे फूल थे, कमर तक आने वाली मखमली घास थी और सफेद बादल उन्हें छूकर जा रहे थे. उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखने के लिए कहा गया था. स्कॉट कहते हैं कि उनकी बाईं तरफ काफी लंबे और खूबसूरत पेड़ थे. ऐसे पेड़ उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे. दूसरी तरफ खूबसूरत फूल थे. वे कहते हैं अब भी उन्हें वो सुंदर फूल याद हैं. उन्हें बेहद शांति और अच्छा महसूस हो रहा था.
ऐसे हुई शरीर में वापसी

उन्हें अचानक अपने जन्म से लेकर अब तक की पूरी यात्रा वीडियो की तरह दिखने लगी. इनमें से कुछ पल दुखी करने वाले थे और कुछ खुश. उन्हें महसूस हुआ कि वो इससे बेहतर ज़िंदगी जी सकते थे. वे अदृश्य शक्ति के कहने पर बादलों की ओर जा रहे थे, इसी बीच किसी ने उनका हाथ पकड़ा और कहा – अभी तुम्हारा समय नहीं है, तुम्हें और भी चीज़ें करनी हैं. इस आवाज़ के बाद झटके से वे अपने शरीर में आ गए. स्कॉट अपने मरने के बाद से 20 मिनट को बहुत ही अच्छा और शांतिपूर्ण अनुभव बताते हैं और कहते हैं कि इसके बाद उन्होंने ज़िंदगी को अलग तरीके से देखना और जीना शुरू कर दिया. II

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मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका स्वस्थ शरीर हैं इससे बड़ा जगत में कोई धन नहीं है यद्यपि बहुत लोग धन के पीछे अपना यथार्थ और भविष्य सब कुछ भुल जाते हैं। उनको बस सब कुछ धन ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अन्तहीन समय आने पर उन्हें जब तक ज्ञात होता है तब तक देर हो चुकी होती है। क्या मैंने थोड़ा सा समय अपने लिए जिया काश समय अपने लिए कुछ निकाल पाता तो आज इस अवस्था में मै नहीं होता जो परिवार का मात्र एक प्रमुख सहारा है वह आज दुसरे की आश लगाये बैठा है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह समय हम पर निर्भर करता है थोडा सा ध्यान चिन्तन करने के लिए अपने लिए उपयुक्त समय निकाल कर इस शारीरिक मापदंड को ठीक किया जाय। और शरीर को नुकसान से बचाया जाए और स्वास्थ्य रखा जाय और जीवन जीने की कला को समझा जाय।   vinaysinghsubansi.blogspot.com पर इसी पर कुछ हेल्थ टिप्स दिए गए हैं जो शायद आपके लिए वरदान साबित हो - धन्यवाद